२३. यह दॆश भला क्या डरॆगा........
________________________________________________
यहाँ राँणाप्रताप नॆं खायीं, घास की रॊटियाँ,
यहाँ माताऒं नॆं बलि दियॆ, बॆटॆ और बॆटियाँ,
यहाँ फाँसी कॆ फंदॊं कॊ, गलॆ का हार समझा,
उजड़ी माँग कॊ, आज़ादी का, उपहार समझा,
यहाँ एकता की नींव पाताल सॆ भी गहरी है,
इस दॆश का हिमालय, पर्वत जैसा प्रहरी है,
इंक्लाब का नारा निकला है,यहाँ जॆल की सलाखॊं सॆ !
यह दॆश भला क्या डरॆगा, उन आतंकवादी पटाखॊं सॆ !!१!!
यहाँ सभी धर्मॊं का, आपस मॆं अटूट नाता है,
यहाँ इस्लाम की आह,पर हिंदू तड़प जाता है,
यहाँ साथ साथ, कुरआन और गीता दॊनॊं हैं,
एक ही घर मॆं, मरियम और सीता दॊनॊं हैं,
यहाँ बच्चा-बच्चा, बंदॆ-मातरम गीत गाता है,
गर्भ मॆं बालक,चक्रव्यूह तॊड़ना सीख जाता है,
यहाँ पर चिंगारियाँ निकलतीं,हैं उन चूड़ी वालॆ हाँथॊं सॆ !!२!!
यह दॆश भला क्या डरॆगा......................................
इसकी कॊंख सॆ रामदास,ज्ञानॆश्वर सॆ संत जन्मॆं,
सूर तुलसी कबीरा कभी,निराला और पंत जन्मॆं,
हरिश्चंद्र मौरध्वज और कभी ध्रुव-प्रह्लाद जन्मॆं हैं,
सुखदॆव भगतसिंह राजगुरू और आज़ाद जन्मॆं हैं,
जन्मॆं महाराँणा शिवाजी और छत्रसाल यहाँ पर,
हँसकर सूली चढ़तॆ, भारत माँ कॆ लाल यहाँ पर,
आज़ादी का दीपक छीना जिसनॆं, काली अँधियारी रातॊं सॆ !!३!!
यह दॆश भला क्या डरॆगा.........................................
“कवि-राजबुँदॆली"
Thursday, December 23, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment