Thursday, December 23, 2010

श्रृँगार लिखूँ या अँगार लिखूँ"
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हर नौजवान कॆ हाथों मॆं, बस बॆकारी का हाला,
हर सीनॆं मॆं असंतोष की, धधक रही है ज्वाला,
नारी कॆ माथॆ की बिंदिया, ना जानॆं कब रॊ दॆ,
वॊ बूढी मैया अपना बॆटा,क्या जानॆं कब खॊ दॆ,
बिलख रहा है राखी मॆ, कितनीं, बहनॊं का प्यार लिखूं !!१!!
कविता कॆ रस प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!

धन्य धन्य वह क्षत्राणी जिनकॊ वैभव नॆं पाला था,
आ पड़ी आन पर जब, सबनॆं जौहर कर डाला था,
कल्मषता का काल-चक्र, पलक झपकतॆ रॊका था,
इतिहास गवाही दॆता है, श्रृँगार अग्नि मॆं झॊंका था,
हल्दीघाटी कॆ कण-कण मॆं, वीरॊं की शॊणित धार लिखूं !!२!!
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ, श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!

श्रृँगार सजॆ महलॊं मॆं वह,तड़ित बालिका बिजली थी,
श्रृँगार छॊड़ कर महारानी, रण भूमि मॆं निकली थी,
बुंदॆलॆ हरबॊलॊं कॆ मुंह की, अमिट ज़ुबानी लिखी गई,
खूब लड़ी मर्दानी थी वह, झांसी की रानी लिखी गई,
उन चूड़ी वालॆ हाँथॊं मॆं, मैं चमक उठी तलवार लिखूं !!३!!
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!

बॆटॆ कॆ सम्मुख मां नॆं, पाठ स्वराज्य का बाँचा हॊगा,
मुगलॊं की छाती पर तब,वह शॆर मराठा नाँचा हॊगा,
भगतसिंह की मां का दॆखॊ, सूना आंचल श्रृँगार बना,
इतिहास रचा बॆटॆ नॆं जब, तपतॆ तपतॆ अंगार बना,
कह रहीं शहीदॊं की सांसॆं,भारत की जय-जयकार लिखूं !!४!!
कविता कॆ रस-प्रॆमी बॊलॊ,श्रृँगार लिखूं या अंगार लिखूं !!

"कवि-राजबुंदॆली"

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