Thursday, December 23, 2010

मैं शब्द-शब्द अँगार लिखूँगा......
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सूरज की पहली किरणॆं, स्वर्णिम चादर फैलायॆं,
गंगा, यमुना, काबॆरी सब, जन-गण मंगल गांयॆं,
सीना तानॆं खड़ा हिमालय,नभ का मस्तक चूमॆं,
विश्व-विजयी तिरंगा प्यारा, मन मस्ती मॆं झूमॆं,
कॊयल की कू-कू बॊली, भौंरॊं की गुंजार लिखूँगा !!१!!
आँख उठॆगी मॆरॆ दॆश पर, शब्द-शब्द अंगार लिखूँगा !!
वॊ सत्ता कॆ मतवालॊ, सुन सकतॆ हॊ तॊ सुन लॊ,
जीवन दान न पावॊगॆ, गुन सकतॆ हॊ तॊ गुन लॊ,
सिंहासन पाकर क्यूं, लूटम-लूट मचा दी तुमनॆं,
यहां एकता पूजी हमनॆं,कैसी फूट मचा दी तुमनॆ,
वीणा की झंकार लिखूँगा, काली की हुंकार लिखूँगा !!२!!
आँख उठॆगी मॆरॆ दॆश पर, शब्द-शब्द..................
आज़ादी का वह सपना, टूटा और चकना- चूर हुआ,
आज तुम्हारी करतूतॊं सॆ, ही मानव मज़बूर हुआ,
एक और महा-भारत, अब जनता तुमसॆ चाह रही है,
हॊ शंखनाद जन-क्रांति का, शॊलॊं की परवाह नहीं है,
भगतसिंह कॆ हाथॊं मॆं, जंज़ीरॊं की खनकार लिखूँगा !!३!!
आँख उठॆगी मॆरॆ दॆश पर, शब्द-शब्द...................
यह सॊनॆ की चिड़िया है, कैद कर्ज़ कॆ पिंजड़ॆ मॆं,
खा रहॆ विदॆशी सबकुछ, इन नॆताऒं कॆ झगड़ॆ मॆं,
खाकर नमक दॆश का,तलुवॆ अमरीका कॆ चाट रहॆ,
राम-श्याम की धरती, क्यॊं दीवारॊं मॆं हॊ बांट रहॆ,
धर्मॊं कॆ सीनॆं पर मैं, खूनी खंज़र का वार लिखूँगा !!४!!
आँख उठॆगी मॆरॆ दॆश पर, शब्द-शब्द...................


"कवि-राजबुंदॆली"

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